॥ दोहा ॥
जय गणपति सदगुण सदन, कविवर बदन कृपाल ।
विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल ॥
इस मंत्र में गणेशजी की महिमा का वर्णन किया गया है, जिन्हें विघ्नहरण (विघ्नों को हरने वाले), मंगलकरण (मंगल करने वाले) और जय जय गिरिजालाल (माता पार्वती के पति, भगवान शिव) कहा गया है। यह मंत्र गणेशजी की पूजा और आराधना के समय प्रयुक्त होता है और उनकी कृपा और आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए बोला जाता है।
Ganesh Chalisa by Anuradha Paudwal
॥ चौपाई ॥
जय जय जय गणपति गणराजू । मंगल भरण करण शुभः काजू ॥
जै गजबदन सदन सुखदाता । विश्व विनायका बुद्धि विधाता ॥
इस मंत्र में भगवान गणेश की प्रशंसा की गई है। इसमें गणेशजी को गणराज (गणों के राजा), मंगलकरण (मंगल करने वाले), सुखदाता (सुख प्रदान करने वाले) और बुद्धि विधाता (बुद्धि का प्रदाता) कहा गया है। यह मंत्र गणेश जी की पूजा के समय प्रयुक्त होता है और उनकी कृपा और आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए बोला जाता है।
वक्र तुण्ड शुची शुण्ड सुहावना । तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन ॥
राजत मणि मुक्तन उर माला । स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला ॥
यह मंत्र भगवान गणेश की चरण पूजा के समय प्रयुक्त होता है और इसमें गणेशजी की महिमा का वर्णन किया गया है। इसमें उनके वक्र तुण्ड (वक्रतुण्ड महाकाया – आकार में वक्र, बड़े), शुची शुण्ड (शुद्ध, सुंदर), तिलक त्रिपुण्ड भाल (तिलक, त्रिपुण्ड – तीन पथ, भाल – माथा) की सिफारिश की गई है, जो गणेशजी की खास पहचान होती है। इसके साथ ही उनके शरीर पर राजत मणियों की माला, स्वर्ण मुकुट, बड़े शिर (मस्तक) और बड़े नेत्रों का वर्णन भी है, जो उनके महात्म्य को और भी प्रकट करता है।
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं । मोदक भोग सुगन्धित फूलं ॥
सुन्दर पीताम्बर तन साजित । चरण पादुका मुनि मन राजित ॥
इस मंत्र में भगवान गणेश की विशेष विशेषताओं का वर्णन किया गया है। इसमें उनके पास पुस्तक (ज्ञान का प्रतीक), पाणियों में कुठार (कठिनाई का प्रतीक) और त्रिशूल (शक्ति का प्रतीक) है। उनका प्रिय भोजन मोदक है और उनके चारणों के पास पादुका है, जो मुनियों के मन को आकर्षित करता है। उनका शरीर सुन्दर पीताम्बर से ढका होता है, जो उनकी महिमा को और भी बढ़ा देता है।
धनि शिव सुवन षडानन भ्राता । गौरी लालन विश्व-विख्याता ॥
ऋद्धि-सिद्धि तव चंवर सुधारे । मुषक वाहन सोहत द्वारे ॥
इस मंत्र में भगवान गणेश की महिमा का वर्णन किया गया है। इसमें उन्हें धनी और शिव के पुत्र (शिव सुवन), षडानन के भ्राता (षडानन का भ्राता), गौरी के पुत्र (गौरी लालन) और विश्व-विख्याता (विश्व में प्रसिद्ध) कहा गया है। इसके साथ ही उनके पास ऋद्धि (संपत्ति) और सिद्धि (सफलता) का चंवर (छाता) होता है, और उनका वाहन मुषक (चूहा) होता है, जो उनके द्वारे (गणेश के द्वारे) सोहता है।
कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी । अति शुची पावन मंगलकारी ॥
एक समय गिरिराज कुमारी । पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी ॥
इस मंत्र में भगवान गणेश की माता पार्वती के साथ जन्म कथा का वर्णन किया गया है। माता पार्वती ने अत्यंत शुचिता (साफ-सुथराई), पवित्रता (पवित्रता की गरिमा), और मंगलकारी (मंगल करने वाली) गुणों से युक्त जन्म लिया था। एक समय, उन्होंने पुत्र की प्राप्ति के लिए अत्यंत भारी तपस्या की, जिससे उन्हें गणेश जी का आशीर्वाद मिला।
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा । तब पहुंच्यो तुम धरी द्विज रूपा ॥
अतिथि जानी के गौरी सुखारी । बहुविधि सेवा करी तुम्हारी ॥
इस मंत्र का हिंदी अर्थ है: “जब यज्ञ पूर्ण हो रहा था, तो तुमने अपने द्विज रूप में धारण किया। तुमने अतिथि के रूप में आकर गौरी का सुख साझा किया, और तुम्हारी सेवा में विभिन्न प्रकार की सेवाएं की।”
अति प्रसन्न हवै तुम वर दीन्हा । मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा ॥
मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला । बिना गर्भ धारण यहि काला ॥
इस मंत्र का हिंदी अर्थ है: “तुम बहुत प्रसन्न होकर वर (आशीर्वाद) दिया है, जो तुम्हारे माता-पिता ने तपस्या की। अब तुम्हें पुत्र के रूप में मिला है, जिसकी बुद्धि विशाल है, और यह समय काल के बिना गर्भ धारण किया गया है।”
गणनायक गुण ज्ञान निधाना । पूजित प्रथम रूप भगवाना ॥
अस कही अन्तर्धान रूप हवै । पालना पर बालक स्वरूप हवै ॥
इस मंत्र का हिंदी में अर्थ होता है: “गणनायक, गुणों का स्तुति और ज्ञान का धन, पूजित प्रथम रूप वाले भगवान। इसका ऐसा कही जाता है कि वे अन्तर्धान रूप में होते हैं, और वे पालना करने पर एक बालक के स्वरूप में प्रकट होते हैं।”
बनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठाना । लखि मुख सुख नहिं गौरी समाना ॥
सकल मगन, सुखमंगल गावहिं । नाभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं ॥
इस मंत्र का हिंदी अर्थ है: “जब तुमने ऐसा ठाना किया कि तुम्हारा एक बच्चा रो रहा है, तब तुमने मुझे देखा, लेकिन मेरा मुँह सुख को नहीं दिखाया॥ सब खुशियों में डूबे, सुखमंगल गाया। तुमने अपने नाभ से सुरबहर सुमन वर्षित किए॥”
शम्भु, उमा, बहुदान लुटावहिं । सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं ॥
लखि अति आनन्द मंगल साजा । देखन भी आये शनि राजा ॥
इस मंत्र का हिंदी अर्थ होता है: “भगवान शिव और माता पार्वती, बहुदानों को लुटाते हैं, सुरों और मुनियों के साथ अपने पुत्र को देखने आते हैं। बड़े आनंदमय और मंगल रूप में सजाया गया है, और शनि राजा भी उनको देखने आए हैं।”
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं । बालक, देखन चाहत नाहीं ॥
गिरिजा कछु मन भेद बढायो । उत्सव मोर, न शनि तुही भायो ॥
इस मंत्र का हिंदी अर्थ होता है: “अपने अवगुणों के कारण, भगवान शनि मन में बालक की तरह देखा नहीं जाता। माता पार्वती ने कुछ मन में भेद बढ़ा दिया है, लेकिन मेरे उत्सव में, शनि राजा को तुम्हारा भाग्य नहीं मिला है।”
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कहत लगे शनि, मन सकुचाई । का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई ॥
नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ । शनि सों बालक देखन कहयऊ ॥
इस मंत्र का हिंदी अर्थ होता है: “शनि बोले, ‘तुम क्यों कह रही हो, मुझे अपने शिशु को देखना है? मुझमें कुछ विश्वास नहीं हो रहा है, और उमा का मन भी डर जाता है कि शनि मेरे बच्चे को देखने की बात कर रहे हैं।'”
पदतहिं शनि दृग कोण प्रकाशा । बालक सिर उड़ि गयो अकाशा ॥
गिरिजा गिरी विकल हवै धरणी । सो दुःख दशा गयो नहीं वरणी ॥
इस मंत्र का हिंदी अर्थ होता है: “पदतल पर शनि ने अपने दृष्टि के कोण से प्रकाश किया, और बालक का सिर आकाश में उड़ गया। गिरिजा (माता पार्वती) ने गिरिराज (भगवान शिव) को देखकर चिंतित हो गई, लेकिन वह दुख नहीं हुआ।”
हाहाकार मच्यौ कैलाशा । शनि कीन्हों लखि सुत को नाशा ॥
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो । काटी चक्र सो गज सिर लाये ॥
इस मंत्र का हिंदी अर्थ होता है: “कैलाश पर भयंकर हाहाकार हुआ, जिससे शनि ने अपने पुत्र का नाश किया। तुरंत गरुड़ चढ़कर भगवान विष्णु ने उनको सीधे पकड़ लिया, और फिर उन्होंने गज के सिर को काट दिया।”
बालक के धड़ ऊपर धारयो । प्राण मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो ॥
नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे । प्रथम पूज्य बुद्धि निधि, वर दीन्हे ॥
इस मंत्र का हिंदी अर्थ होता है: “बच्चे के धड़ पर धारण किया, और प्राण मंत्र पढ़कर भगवान शंकर ने उसको डार लिया। इसी समय उसने गणेश का नाम रखा, और उन्हें प्रथम पूज्य और बुद्धि के स्रोत के रूप में वरदान दिया।”
बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा । पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा ॥
चले षडानन, भरमि भुलाई । रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई ॥
“जब बुद्धि की परीक्षा की जा रही थी, तब भगवान शिव ने पृथ्वी की प्रदक्षिणा की। शडानन (भगवान गणेश) ने चाल करके भूल जाई, और तुमने बैठकर बुद्धि का उपाय रचा।”
चरण मातु-पितु के धर लीन्हें । तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें ॥
धनि गणेश कही शिव हिये हरषे । नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे ॥
“भगवान गणेश ने अपने माता-पिता के चरणों को छूकर धारण किया और उनके सात प्रदक्षिणा की। इससे भगवान शिव हुआ हर्षित और धन्य हुए, और आकाश से देवताओं की सुमन बहने लगी।”
तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई । शेष सहसमुख सके न गाई ॥
मैं मतिहीन मलीन दुखारी । करहूं कौन विधि विनय तुम्हारी ॥
तुम्हारी महिमा ने बुद्धि को बढ़ा दिया है, शेष नाग के सहस्र मुख भी उसकी महिमा को गाने में असमर्थ हैं। मैं मतिहीन, मलीन, और दुखी हूँ, कौन सी विधि बिना, विनय कर सकता हूँ, जो तुम्हारी श्रद्धा को प्राप्त कर सके।”
भजत रामसुन्दर प्रभुदासा । जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा ॥
अब प्रभु दया दीना पर कीजै । अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै ॥
“प्रभु रामसुंदर (भगवान राम) को भजो, ओ प्रभुदासा! जग में प्रयाग, काकरा, और दुर्वासा के समान कोई नहीं है। अब प्रभु, दया करके हम पर कृपा कीजिए, और अपनी शक्ति और भक्ति कुछ हमें दीजिए।”
॥ दोहा ॥
श्री गणेश यह चालीसा, पाठ करै कर ध्यान ।
नित नव मंगल गृह बसै, लहे जगत सन्मान ॥
“श्री गणेश की यह चालीसा, जो पाठ किया जाता है, वह ध्यान करने के समान होता है। इसके पाठ से नित नव मंगल गृह (गणेश भगवान) हमारे पास बसे रहते हैं और वे सम्पूर्ण जगत का सन्मान करते हैं॥”
सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश ।
पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ती गणेश ॥
“गणेश भगवान के संबंध सहस्त्र दश (10,000) हैं, और ऋषि पंचमी दिनेश (पंचमी तिथि के पूज्य ऋषि) के हैं।
इस पूरी चालीसा को पूर्ण किया गया है, जिससे मंगलमय गणेश भगवान का आशीर्वाद मिला है॥”
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