श्री हनुमान चालीसा दोहा। Hanuman Chalisa Doha In Hindi
हम सब को हनुमान चालीसा Hanuman Chalisha का ज्ञान होना बहोत जरूरी है। आज के दिन हम लोग अपने व्यस्त जीवन में इतना समय भी नहीं निकल पाते है की हम मंदिर जा सके।
किसी ने बहोत खूब कहा है “मन चंगा , कठौती में गंगा ” इसलिए हम आज इस पोस्ट में आपके लिए हनुमान चालीसा का पाठ ले के आये है और साथ सही साथ हम उसका अर्थ भी बताएँगे। जितना हो सके अपने बच्चों, परिवार और दोस्तों में शेयर करे ताकि जाने अनजाने वो भी अपने संकट से बचे रहे।
॥ दोहा॥
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि ॥
इस श्लोक में गुरु की महिमा का वर्णन किया गया है और यह बताता है कि गुरु के पादों के चरण की पूजा करने से व्यक्ति अपने मन को शुद्धि देने का प्रयास करता है। इसके बाद, श्लोक वीर श्रीराम के गुणों की प्रशंसा करता है, जो चार फल (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) का दानकरने वाले हैं।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार ।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं,हरहु कलेस बिकार ॥
इस दोहे का अर्थ है की हम जानकर भी अज्ञानी शरीर को बुद्धिहीन समझ, मैं हनुमान जी का स्मरण करता हूँ। हे हनुमान, कृपा करके मेरे शरीर को बल, बुद्धि और विद्या का दान करो, और मेरे कलेसों को दूर करो।
Video Of Hanuman Chalisa By Gulsan Kumar
॥ चौपाई ॥
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर । जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥
राम दूत अतुलित बल धामा । अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥
इस चोपाई का अर्थ होता है की हे हनुमान, ज्ञान और गुणों का समुंदर, हे कपिस्त्री तीनों लोकों में प्रकाशमान हैं। तुम राम के अतुलित बल और गुणों के धाम हो, तुम अंजना माता के पुत्र और पवनसुत हनुमान नामक हो।
महाबीर बिक्रम बजरंगी । कुमति निवार सुमति के संगी ॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा । कानन कुण्डल कुँचित केसा ॥
इस चौपाई का अर्थ होता है की हे महावीर हनुमान, वीर और अत्यंत प्राकट्यवान, तुम कुमति को दूर करने वाले हो और सुमति के साथ विराजमान हो। तुम जिनके कंचन (सुने जैसे) वर्ण और सुंदर सेना में बिराजमान हो, जिनके कान में कुण्डल हैं और जिनके बाल झटित हैं।
हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजै । काँधे मूँज जनेउ साजै ॥
शंकर स्वयं/सुवन केसरी नंदन । तेज प्रताप महा जगवंदन ॥
इस चौपाई का अर्थ होता है की हे हनुमानजी, आपके हाथ में वज्र और ध्वज विराजमान हैं, और आपके कांपी भगवान का मूँज और जनेऊ सजे हुए हैं। आप शंकर भगवान के स्वयंभू और सुन केसरी नंदन हैं, आपकी तेज प्रताप ने पूरे जगत को आश्चर्यचकित किया है।
बिद्यावान गुनी अति चातुर । राम काज करिबे को आतुर ॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया । राम लखन सीता मन बसिया ॥
इस चौपाई का अर्थ होता है की हे हनुमानजी, आप विद्यावान, गुणी, और अत्यंत चतुर हैं, और आपको भगवान राम के कार्यों का पूर्ण उत्साह है। आप प्रभु राम के कथा को ध्यान से सुनाते हैं, और राम, लक्ष्मण, और सीता की चरित्रमय गाथाओं में मन लगा हुआ हैं।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा । बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे । रामचन्द्र के काज सँवारे ॥
लाय सजीवन लखन जियाए । श्री रघुबीर हरषि उर लाये ॥
इस चौपाई का अर्थ होता है की हे हनुमानजी, आपने सूक्ष्म रूप में सीता माता को दिखाया, बिकट रूप में लंका को जलाया। आपने भगवान राम के आदर्श से भीम रूप में असुरों का संहार किया, और रामचन्द्र भगवान के कार्यों को संपूर्ण किया। आपने सजीवन लक्ष्मण को लाया और श्रीरघुबीर (राम) के दर्शन से लखना को जीवित किया, जिससे श्रीरघुबीर के हृदय में हर्ष उत्पन्न हुआ।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई । तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं । अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥
इस चौपाई का अर्थ है की श्री राम ने हनुमान जी को अपने प्रिय भरत के समान भाई कहा है। उन्होंने कहा है कि वे हनुमान जी की महिमा को हजारों मुखों से भी नहीं गा सकते हैं। ऐसा कहकर श्री राम ने हनुमान जी को अपने गले से लगा लिया।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा । नारद सारद सहित अहीसा ॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते । कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥
इस चौपाई का अर्थ है की हनुमान जी सभी देवताओं, ऋषियों और मुनियों द्वारा पूजनीय हैं। वे सभी सृष्टि के रक्षक हैं और उनकी महिमा को कोई भी शब्दों में नहीं बयां कर सकता।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना । राम मिलाय राज पद दीह्ना ॥
तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना । लंकेश्वर भए सब जग जाना ॥
इस चौपाई का अर्थ है की पहला, उन्होंने सुग्रीव और बाली के बीच हुए युद्ध में सुग्रीव की सहायता की और उसे राजा बनाया। दूसरा, उन्होंने विभीषण को रावण के दुष्कर्मों से बचाया और उसे राम की शरण में भेजा। इन दोनों उपकारों से रामायण के कथानक का विकास हुआ और अंततः रावण का वध हुआ।
जुग सहस्त्र जोजन पर भानु । लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं । जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥
इस चौपाई में बताया गया है कि हनुमान जी ने एक युग सहस्त्र योजन की दूरी पर स्थित सूर्य को मीठा फल समझकर खा लिया था। इस घटना से यह पता चलता है कि हनुमान जी की शक्तियां इतनी महान हैं कि वे असंभव को भी संभव कर सकते हैं।
दुर्गम काज जगत के जेते । सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥
राम दुआरे तुम रखवारे । होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥
इस चौपाई का अर्थ होता है की जो भी दुर्गम कार्य इस जगत में होते हैं, वे सभी तुम्हारे बिना असंभव हो जाते हैं। तुम्हारे आशीर्वाद से सब कुछ सुगम हो जाता है। तुम राम भगवान के द्वारपाल हो और बिना तुम्हारी आज्ञा के कोई भी अंदर नहीं जा सकता।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना । तुम रक्षक काहू को डरना ॥
आपन तेज सम्हारो आपै । तीनों लोक हाँक तै काँपै ॥
इस चौपाई का अर्थ होता है की तुम्हारी शरण में आने से सभी सुख मिलते हैं, और किसी को डरने की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि तुम ही सबके रक्षक हो। आप अपनी शक्ति से सब कुछ संहार सकते हैं और तीनों लोक आपकी महानता को प्रमाणित करते हैं, और वे आपके तेजस्वी स्वरूप से कांप जाते हैं।
भूत पिशाच निकट नहिं आवै । महावीर जब नाम सुनावै ॥
नासै रोग हरै सब पीरा । जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥
इस चौपाई का अर्थ होता है की भूत और पिशाच तो दूर ही रहते हैं, जब बड़े महान वीर हनुमान का नाम सुनाया जाता है। वे सभी रोगों को नष्ट कर देते हैं और सभी पीड़ाओं को हर देते हैं, तब तक जब तक हनुमान बीरा का निरंतर जाप किया जाता है।
संकट तै हनुमान छुडावै । मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥
सब पर राम तपस्वी राजा । तिनके काज सकल तुम साजा ॥
इस चौपाई का अर्थ होता है की हनुमानजी संकटों को दूर कर देते हैं और वे व्यक्ति के मन, क्रिया, और वचन को ध्यान में लाने में मदद करते हैं। राम भगवान सभी तपस्वी और राजाओं के परम स्वामी हैं, और उनके साथ हनुमानजी सभी कार्यों को सफलता से पूरा करते हैं।
और मनोरथ जो कोई लावै । सोई अमित जीवन फल पावै ॥
चारों जुग परताप तुम्हारा । है परसिद्ध जगत उजियारा ॥
इस चौपाई का अर्थ होता है की और जो कोई भी मनोरथ (इच्छित कार्य) करने के लिए आता है, वही अमित (अनंत) जीवन के फल को प्राप्त करता है। तुम्हारा पराक्रम चारों युगों में प्रकट होता है और तुम्हारा नाम दुनिया में प्रसिद्ध है, जो सभी को प्रकाशित करता है।
साधु सन्त के तुम रखवारे । असुर निकंदन राम दुलारे ॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता । अस बर दीन जानकी माता ॥
इस चौपाई का अर्थ होता है की तुम साधु-संतों के प्रति रक्षक हो, और भगवान राम के प्रिय होने के कारण आसुरों का नाश करने वाले हैं। तुम अष्ट सिद्धियों और नौ निधियों के दाता हो, और सीता माता के दीन-बंधु हो।
राम रसायन तुम्हरे पासा । सदा रहो रघुपति के दासा ॥
तुम्हरे भजन राम को पावै । जनम जनम के दुख बिसरावै ॥
इस चौपाई का अर्थ होता है की तुम्हारे पास राम भगवान का अमृत है, और तुम हमेशा भगवान राम के दास रहो। जिन्होंने तुम्हारा भजन किया है, वे भगवान राम को प्राप्त होते हैं और जन्म-जन्म के दुखों को भूल जाते हैं।
अंतकाल रघुवरपुर जाई । जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥
और देवता चित्त ना धरई । हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥
इस चौपाई का अर्थ होता है की अंतकाल पर वह राघुकुल (राम के वंश) के नगर (राम के आश्रम) जाते हैं, जहाँ उनका जन्म होता है और वे हरिभक्तों के रूप में जाने जाते हैं। और वह देवताओं के मन में स्थित नहीं होते, लेकिन हनुमानजी वह सब सुख प्रदान करने वाले देवता हैं।
संकट कटै मिटै सब पीरा । जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥
जै जै जै हनुमान गोसाईं । कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥
इस चौपाई का अर्थ है की जो कोई भी हनुमान बलबीर का ध्यान करता है, उसके सभी संकट और पीड़ा दूर हो जाती है। हे हनुमान गोसाईं, हे मेरे गुरुदेव, कृपा करो!
जो सत बार पाठ कर कोई । छूटहि बंदि महा सुख होई ॥
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा । होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा । कीजै नाथ हृदय मह डेरा ॥
इस चौपाई का अर्थ होता है की जो कोई इस हनुमान चालीसा को सत्रह बार पाठ करता है, उसके सभी बंधन मुक्त हो जाते हैं और वह महान सुख प्राप्त करता है। जो भी यह हनुमान चालीसा पढ़ता है, वह सिद्धि प्राप्त करता है और गौरीसंकर (भगवान शिव) का साक्षी होता है। तुलसीदास हमेशा भगवान हरि का भगत रहे हैं और उनके मन में भगवान के लिए विश्वास है। वह हनुमान जी को अपने हृदय में बसाएं।
॥ दोहा ॥
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ॥
इस दोहे का अर्थ होता है की हे पवन पुत्र हनुमान, आप संकट को दूर करने वाले हैं और आपके दर्शन से सब कुछ मंगलमय होता है।राम, लक्ष्मण और सीता के साथ, आपका हृदय में बसने वाले दिव्य सुन्दर स्वरूप को हर देवता और सुरराज के हृदय में बसाएं।
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