- “कर्म का फल देने का अधिकार तुम्हारा है, कर्म का फल मांगने का नहीं।” – भगवद गीता, अध्याय 2, श्लोक 47
- “अपने कर्म करते जाओ, फल की चिंता मत करो।” – भगवद गीता, अध्याय 2, श्लोक 50
- “मनुष्य की शक्ति उसकी इच्छा से होती है।” – भगवद गीता, अध्याय 2, श्लोक 56
- “भगवान के बिना कोई भी कुछ भी संभव नहीं है।” – भगवद गीता, अध्याय 9, श्लोक 22
- “जो कुछ भी हुआ, अच्छा हुआ। जो हो रहा है, अच्छा हो रहा है। जो होगा, वह भी अच्छा होगा।” – भगवद गीता, अध्याय 18, श्लोक 66
- “आपके कर्म ही आपके दर्शन को प्राप्त करवा सकते हैं।” – भगवद गीता, अध्याय 4, श्लोक 11
- “कर्म उसे बंधता है जो कर्मों के फल में आसक्ति रखता है, जबकि ज्ञानी कर्मों को करता है, लेकिन फलों में आसक्ति नहीं रखता।” – भगवद गीता, अध्याय 3, श्लोक 28
- “विद्या विनय सम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि। शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः।।” – भगवद गीता, अध्याय 5, श्लोक 18
- “आपके द्वारा किए गए कर्म आपके द्वारा दान के रूप में दिये जाने चाहिए, बिना किसी आकर्षण या द्वेष के।” – भगवद गीता, अध्याय 17, श्लोक 20
- “कोई भी कर्म बड़ा नहीं होता, कर्म करने वाले का भाव बड़ा होता है।” – भगवद गीता, अध्याय 18, श्लोक 41
You Also Like 50 Krishna Quotes from the Bhagavad Gita in English - “अपने कर्मों के प्रति समर्पण करो, फल की चिंता मत करो।” – भगवद गीता, अध्याय 18, श्लोक 66
- “जीवन के संघर्ष में धैर्य और साहस होना आवश्यक है।” – भगवद गीता, अध्याय 18, श्लोक 36
- “भगवान को याद करके आपका कर्म करो और उसका फल उसे समर्पित करो।” – भगवद गीता, अध्याय 18, श्लोक 57
- “वही सच्चा ज्ञानी है जो जीवों में भगवान को देखता है और उनके सब में समानता मानता है।” – भगवद गीता, अध्याय 6, श्लोक 29
- “यदि तुम खुद के लिए कुछ करते हो तो वह अहंकार है, लेकिन दूसरों के लिए कुछ करना सेवा है।” – भगवद गीता, अध्याय 3, श्लोक 27
- “कर्म करो, लेकिन उसके फल की आसक्ति मत करो।” – भगवद गीता, अध्याय 2, श्लोक 47
- “कर्म करने में लगे रहो, फल की चिंता मत करो।” – भगवद गीता, अध्याय 2, श्लोक 108
- “कर्मयोगी को कर्म में आसक्ति नहीं, फल में आसक्ति नहीं होती।” – भगवद गीता, अध्याय 6, श्लोक 1
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You also like: Good Morning Messages - “आपके जीवन का उद्देश्य आपके द्वारा चुना जाता है, और आपके कर्मों के माध्यम से प्राप्त किया जाता है।” – भगवद गीता, अध्याय 18, श्लोक 43
- “जब आप आत्मा को पहचान लेते हैं, तब आपका दर्शन सच्चा हो जाता है।” – भगवद गीता, अध्याय 6, श्लोक 30
- “किसी को भी अपने कर्म के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता, क्योंकि कर्म स्वतंत्र होता है।” – भगवद गीता, अध्याय 18, श्लोक 59
- “आपके कर्म ही आपके व्यक्तित्व का प्रतीक हैं।” – भगवद गीता, अध्याय 18, श्लोक 61
- “सही और गलत का ज्ञान रखने वाला ही ज्ञानी होता है।” – भगवद गीता, अध्याय 2, श्लोक 16
- “जीवन की सबसे बड़ी प्राप्ति, आत्मा का आत्मा के द्वारा जाना जा सकता है।” – भगवद गीता, अध्याय 6, श्लोक 5
- “सब कुछ भगवान की इच्छा के अनुसार होता है, और हमें उसे स्वीकार करना चाहिए।” – भगवद गीता, अध्याय 18, श्लोक 14
You Also Like 50 Krishna Quotes from the Bhagavad Gita in English - “कर्म करते समय आपकी चिंता सिर्फ कर्म की होनी चाहिए, फल की नहीं।” – भगवद गीता, अध्याय 2, श्लोक 48
- “आत्मा अविनाशी है, यह कभी नष्ट नहीं हो सकती।” – भगवद गीता, अध्याय 2, श्लोक 20
- “आपके कर्म ही आपके दर्शन को प्राप्त करवा सकते हैं।” – भगवद गीता, अध्याय 4, श्लोक 11
- “ध्यान के माध्यम से ही आप आत्मा को पहचान सकते हैं।” – भगवद गीता, अध्याय 6, श्लोक 8
- “आपके कर्म आपके आत्मा की ओर दिशा प्रदर्शन करते हैं।” – भगवद गीता, अध्याय 4, श्लोक 21
- “आत्मा कभी न आती है, और वो कभी न जाती है। वह अजर, अमर और अविनाशी है।” – भगवद गीता, अध्याय 2, श्लोक 20
- “कर्म करो, लेकिन उसके फल की आकांक्षा न करो।” – भगवद गीता, अध्याय 3, श्लोक 19
- “जीवन का उद्देश्य आत्मा को पहचानना और उसके साथ एक होना चाहिए।” – भगवद गीता, अध्याय 6, श्लोक 30
- “भगवान का नाम सबसे श्रेष्ठ ध्यान है।” – भगवद गीता, अध्याय 10, श्लोक 25
- “आत्मा अक्षर, अजर, अमर है, उसे कोई नहीं मार सकता।” – भगवद गीता, अध्याय 2, श्लोक 24
- “कर्म करते समय भगवान की स्मृति में रहो, और उसके लिए कर्म करो।” – भगवद गीता, अध्याय 8, श्लोक 7
- “कर्म और भक्ति के माध्यम से ही आत्मा को पहचाना जा सकता है।” – भगवद गीता, अध्याय 18, श्लोक 57
- “आत्मा कभी न व्यय होती है, वो सदैव अच्छी ही होती है।” – भगवद गीता, अध्याय 2, श्लोक 24
- “आत्मा ब्रह्म में एकरूपी होती है, इसलिए वह सबके लिए समान होती है।” – भगवद गीता, अध्याय 5, श्लोक 29
- “आपके कर्म आपके आपको जाने का माध्यम होते हैं, जो आत्मा के रूप में अनुभव होता है।” – भगवद गीता, अध्याय 18, श्लोक 55
You Also Like 50 Krishna Quotes from the Bhagavad Gita in English - “कर्म करने का यदि आपका आलस्य हो, तो यह अवसर आपके पास बार-बार नहीं आता।” – भगवद गीता, अध्याय 2, श्लोक 40
- “आत्मा का आत्मा से संयोग होना चाहिए, क्योंकि वह सबका सर्वश्रेष्ठ मित्र होता है।” – भगवद गीता, अध्याय 6, श्लोक 5
- “कर्म करते समय फल की चिंता करने वाला कर्मयोगी अज्ञानी होता है।” – भगवद गीता, अध्याय 2, श्लोक 49
- “कर्मों का परित्याग नहीं, कर्मों का फल का परित्याग करो।” – भगवद गीता, अध्याय 3, श्लोक 9
- “आत्मा सदैव शांत और संतुलित रहने चाहिए।” – भगवद गीता, अध्याय 6, श्लोक 7
- “कर्म को त्याग कर देने से निष्काम कर्म नहीं होता, बल्कि उसका अच्छा फल होता है।” – भगवद गीता, अध्याय 6, श्लोक 4
- “कर्मयोगी वह होता है जो कर्म करता है, लेकिन उसके फल में आसक्ति नहीं होती।” – भगवद गीता, अध्याय 6, श्लोक 1
- “आपके कर्म आपके अंतरात्मा को जाने का माध्यम होते हैं।” – भगवद गीता, अध्याय 2, श्लोक 49
- “भगवान की भक्ति सबके लिए एकसमान है, कोई भी उसे कर सकता है।” – भगवद गीता, अध्याय 9, श्लोक 32
- “आत्मा का आत्मा में विश्वास करना चाहिए, क्योंकि वह अनंतर्यामी होता है।” – भगवद गीता, अध्याय 10, श्लोक 20
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